मेरा तुमसे रिश्ता,
जैसे वसंत के मौसम में
खिला-खिला सा चमन,
जैसे बारिश के बाद
धुला-धुला सा आसमान,
जैसे पहाड़ों के पेड़ों पर
पसरा हुआ कोहरा,
जैसे जंगल में गूंजता
चिड़िया का गान,
जैसे चाँद को दुलारती
बहती हुई नदी.
मेरा तुमसे रिश्ता,
जैसे किसी पुराने एल्बम में
कोई पसंदीदा तस्वीर.
कितना अलग है यह रिश्ता
उन सारे रिश्तों से,
जो मैं कभी जी न सका,
पर ज़िन्दगी-भर निभाता रहा.
बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंवाह ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मन में उतरती रचना ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह वाह वाह!सार्थक चिन्तन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दिल को छूती रचना,सादर नमस्कार 🙏
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
Dil Ko chhune wali Rachna
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंजीना और निभाना दोनों ही साथ-साथ चलते हैं, एक दिल से एक दिमाग़ से!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंजीवन में कोई-कोई रिश्ता एसा ही मिल जाता है,जो जीवन के हर रिश्ते की कमी पूरी कर देता है।हर इन्सान वही रिश्ते निभा रहा है जो जी नहीं पाता अत्यंत प्रभावी और मन में उतरती रचना।🙏
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