top hindi blogs

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

६०१.गुलेल



फेंक दो गुलेलें,

एक  यही तो खेल नहीं है.

देखो, पेड़ों की डालियों पर 

सहमे बैठे हैं पंछी,

क्या तुम्हें नहीं भाता 

उनका चहचहाना?

***

अगर नहीं फेंक सकते गुलेल,

तो यूँ कर लो,

पत्थर नहीं, फूल चलाओ,

जितना चाहो,

परिंदों पर बरसाओ. 

***

खेल के नाम पर 

बच्चों के हाथों में 

गुलेल मत दो,

चहचहाते पंछियों को 

ख़ामोश कर देना 

कुछ भी हो सकता है,

खेल नहीं हो सकता. 


13 टिप्‍पणियां:

  1. आपने कविता के माध्यम से बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी संदेश दिया है । अति सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
    'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर रचना..। मानवता का गहन सबक लिए हुए....

    जवाब देंहटाएं
  4. मानव को मानवता सिखाती बहुत ही खूबसूरत रचना!
    वैसे हम लोगों ने भी बचपन में बहुत गुलेल चलाते थे पर वह किसी जीव या जंतु पर नहीं बल्कि फलों को तोड़ने के लिए चलाते थे!नन्ही चिड़िया पर गुलेल चलाना बहुत ही गलत है!

    जवाब देंहटाएं
  5. हर प्राणी के लिए मन में कोमल भाव हो तो इससे सुंदर अहिंसा का क्या उदाहरण होगा।
    नमन।
    प्रेरक रचना।
    अहिंसा परमोधर्म!

    जवाब देंहटाएं
  6. सही कहा जिससे जीव मात्र को परेशानी हो वह खेल नहीं हो सकता...गुलेल फेंकना ही बेहतर है।
    बहुत ही सुन्दर सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. अगर नहीं फेंक सकते गुलेल,

    तो यूँ कर लो,

    पत्थर नहीं, फूल चलाओ,

    जितना चाहो,

    परिंदों पर बरसाओ.


    सुंदर.....

    जवाब देंहटाएं