नई-नई मिसाइलों के सामने
बेबस लगती हैं पुरानी बंदूकें,
लड़ाकू विमानों के आगे
बौने लगते हैं पैदल सैनिक।
सीमा नहीं रही तबाही की,
अब किसे चाहिए परमाणु बम,
फ़र्क़ नहीं नागरिक और सामरिक में,
जैसे सैनिक ठिकाने, वैसे अस्पताल।
सभी को चिंता है वतन की,
किसी को परवाह नहीं मानवता की,
हुक्मरानों की ज़िद के आगे
कोई मोल नहीं ज़िंदगी का।
जहां देखो, वहीं दिखाई पड़ती हैं
युद्ध की भीषण लपटें,
कोई नहीं जो बुझा सके इन्हें,
बेबस नज़र आती है दुनिया।