मंगलवार, 2 दिसंबर 2025
826. एक ग़ज़ल
गुरुवार, 27 नवंबर 2025
825.रिश्तों की वारंटी
नया रिश्ता ऑर्डर करो,
तो ध्यान से करना,
अच्छी तरह ठोक-बजाकर
सोच-समझकर करना।
मार्केटिंग से सावधान रहना,
पैकिंग पर मत जाना,
थोड़ा भी शक़ हो,
तो मत लेना डिलिवरी।
यह कोई पिज़्ज़ा नहीं है
कि खा लिया और हो गया,
कोई ए. सी. नहीं है
कि चला, तो चला,
नहीं चला, तो नहीं चला।
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा,
कि कब धीरे-धीरे
तुम्हारी ज़िंदगी का
हिस्सा बन जाएगा रिश्ता।
बहुत तकलीफ़ होगी,
जब आएंगी इसमें दरारें,
साबुत नहीं बचोगे तुम भी,
अगर यह टूटा कभी।
ऐसे ही होते हैं रिश्ते,
पकड़ लेते हैं कसकर,
नहीं मिलता इनसे
आसानी से छुटकारा,
नहीं होती रिश्तों की
कोई लाइफ़लॉन्ग वारंटी।
मंगलवार, 4 नवंबर 2025
824. स्कूटर भाई
स्कूटर भाई, अब चलते हैं,
किसी कबाड़ी के यहां रहते है,
तुम भी पुराने, मैं भी पुराना,
बीत चुका है हमारा ज़माना।
यूं उदास मत होना,
जो नए हैं, कभी-न-कभी
वे भी पुराने होंगे,
उनका हाल देखने के लिए
बस हम नहीं होंगे।
गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025
823. दिवाली के बाद
1.
दिवाली के बाद सड़कों पर
यूं बिखरा था पटाखों का मलबा,
जैसे काम निकल जाने के बाद
सही चेहरा दिखे किसी का।
2.
पटाखों का मलबा देखा,
तो मैंने सोचा,
कितना शोर कर रहे थे कल,
आज जाकर पता चली
इनकी असली औक़ात।
3.
सड़क पर पड़े रॉकेट ने कहा,
कुछ सीखो मुझसे,
जो बहुत ऊपर जाता है,
उसे भी आना पड़ता है ज़मीन पर
कभी-न-कभी।
4.
रॉकेट जो कल उड़कर
आसमान में पहुंचा था,
आज इतना बेबस है
कि नहीं बदल सकता
अपने आप करवट भी।
5.
ये चल चुके पटाखे हैं,
फेंक दो इन्हें कूड़ेदान में,
तब की बात और थी,
जब इनमें बारूद भरा था।
शनिवार, 18 अक्टूबर 2025
822. दिवाली पर कुछ हास्य कविताएं
मैं आम तौर से हास्य कविताएं नहीं लिखता, पर इस दिवाली में ऐसी कुछ छोटी-छोटी कविताएं लिखी गईं। मैं इस अनुरोध के साथ साझा कर रहा हूँ कि इन्हें मेरा व्यक्तिगत अनुभव न माना जाय। पाठक ऐसी कोई भी टिप्पणी करने से बचें, जिससे मेरी दिवाली ख़राब होने की संभावना हो।
1.
तुमने रंगोली बनाई,
तो मुझे कहना ही पड़ा
कि अच्छी है,
पिछली बार सच बोला था,
तो सुननी पड़ी थी
पटाखों की आवाज़।
2.
यह दिवाली का बम नहीं
कि बस एक बार फटे,
चिंगारी लग गई,
तो कौन जाने,
कितनी बार फटे।
3.
तुम चकरी चलाती हो,
तो मैं सोचता हूँ,
कितना हुनर है तुममें,
तुम्हें बनाना भी आता है,
चलाना भी।
4.
हमेशा मत फटा करो
लाल पटाखों की तरह,
कभी-कभी ही सही,
दूर चली जाया करो
रॉकेट की तरह।
5.
यह ऐसा पटाखा है,
जो कभी फुस्स नहीं होता,
एक बार आ जाए,
तो फटकर ही मानता है।
सोमवार, 13 अक्टूबर 2025
821. कीचड़ और कमल
मैं जिससे निकला हूँ,
असहज हूँ उससे,
कहाँ मैं कमल,
कहाँ वह कीचड़,
मैं ख़ुशबू से सराबोर,
वह बदबूदार।
कोई मेल नहीं
मेरा और उसका,
उसके साथ रहना
उतना बुरा नहीं लगता,
जितना उसके साथ दिखना।
काश कि मैं जा पाता
उससे बहुत दूर,
जैसे बच्चे चले जाते हैं
गाँव से शहर
कभी न लौटने के लिए।
सोमवार, 29 सितंबर 2025
820. ज़ुबिन की याद में
पिछले दिनों असम के मशहूर गायक ज़ुबिन गर्ग की 52 साल की उम्र में एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनकी अंतिम यात्रा में गुवाहाटी में एक जन-सैलाब देखा गया। लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में इसे किसी अंतिम यात्रा में इतिहास का चौथा सबसे बड़ा जन-समागम बताया गया। असम के दिल की धड़कन पर तीन छोटी-छोटी कविताएं।
***
सुबह सूरज कुछ अनमना-सा था,
कुछ थका-थका, कुछ बुझा-बुझा,
लगता है, उसने भी गुज़ारी थी
कल की रात करवटें बदलकर।
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पंद्रह लाख ज़ुबिन उतरे
उसकी विदाई में सड़कों पर,
पता ही नहीं चला
कि कौन सा ज़ुबिन ज़िंदा था
और कौन सा नहीं था।
***
फिर कभी आओ,
तो ज़ुबिन बनकर आना,
कहीं और नहीं,
यहीं आसाम में आना।
एक हम ही हैं,
जो समझेंगे तुम्हें,
एक हम ही हैं,
जिन्हें पता होगा
तुम्हारा मूल्य।
बुधवार, 27 अगस्त 2025
819.पासवर्ड
बुधवार, 13 अगस्त 2025
818. ईश्वर से
ईश्वर,
मुझे वह सब मत देना,
जो मैं मांग रहा हूँ,
दे दोगे, तो और माँगूँगा,
हो सकता है कि अगर तुम
मांगा हुआ सब कुछ दे दो,
तो मुझे कुछ ऐसा मिल जाए,
जो मेरे लिए बेकार,
किसी और के लिए ज़रूरी हो।
ईश्वर,
अपने विवेक का इस्तेमाल करना,
अपनी स्तुति पर मत रीझना,
प्रार्थना से मत पिघलना,
ज़रूरत से थोड़ा कम देना,
बस उतना ही
कि मैं छीन न सकूँ
किसी और का हक़,
बना रहूँ मनुष्य।
बुधवार, 6 अगस्त 2025
शुक्रवार, 25 जुलाई 2025
817. पासवर्ड और कविता
मेरा पासवर्ड मेरी कविता की तरह है,
मैं नहीं जानता उसका अर्थ,
न ही वह मुझे याद रहता है।
मेरे पासवर्ड में न लय है,
न कोई मीटर,
मैं तो यह भी नहीं जानता
कि उसकी भाषा क्या है,
भाषा है भी या नहीं।
फिर भी मैं जानता हूँ
कि मेरे पासवर्ड में
कुछ खोज ही लेंगे लोग,
जैसे मेरे लिखे में
कविता ढूँढ़ लेते हैं
मेरे पाठक।
मंगलवार, 22 जुलाई 2025
816. पासवर्ड
फ़ाइल बाद में बना लेंगे,
पहले पासवर्ड बनाते हैं,
छिपाने का इंतज़ाम करते हैं,
बाद में तय करेंगे
कि छिपाना क्या है।
**
याद रखना पासवर्ड,
बस तीन मौक़े मिलेंगे,
कोई ज़िंदगी नहीं है
कि बार-बार ग़लती करो
और रास्ता खुला रहे।
बुधवार, 16 जुलाई 2025
815. आइसक्रीम
आइसक्रीम वाला आता था,
तो आ जाते थे
मोहल्ले के सारे बच्चे,
यह उन दिनों की बात है,
जब फ़्रिज़ नहीं होते थे घरों में,
जब नहीं होती थी आइसक्रीम
सिर्फ़ आइसक्रीम.
++
वह बच्चा, जो रोज़ बेचता है
मोहल्ले में आइसक्रीम ,
अक्सर सोचता है,
अगर वह बेचनेवाला नहीं,
ख़रीदनेवाला होता,
तो वह भी खा सकता था
कभी-कभार कोई आइसक्रीम।


