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शुक्रवार, 28 जून 2024

७७३.प्रतिमा

 


सुनो,

जब पत्थर बरसते हैं गलियों में,

आग लगाई जाती है बस्तियों में,

जब सड़कों का रंग लाल 

और आसमान का काला हो जाता है,

जब गीत-संगीत की जगह 

गूँजते हैं ज़हरीले नारे,

बच्चों की किलकारियों की जगह 

गूँजती है उनके रोने की आवाज़. 


जब भूख, नफ़रत और डर का 

अड्डा हो जाता है मोहल्लों में,

तब तुम नुक्कड़ पर खड़े होकर 

इतना हँस कैसे लेते हो?


तुमसे तो अच्छी वह प्रतिमा है,

जो चौराहे पर खड़ी रहती है,

सब कुछ देखती रहती है,

कुछ कर नहीं पाती,

पर कम-से-कम हँसती तो नहीं है. 


7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 01 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. यानि कि इंसान का दिल पत्थर से भी कठोर हो गया है

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  3. देख तेरे इंसान की सूरत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान।

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  4. हैवानों की बस्ती में यही होता है
    शैतानों को दूसरों के दुख से ही सुख मिलता है।

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  5. दिगंबर नासवा1 जुलाई 2024 को 7:06 am बजे

    बहुत गहरी बात

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