यादों,
मैं तुम्हें छोड़ रहा हूँ,
तुमसे कहूँगा नहीं
कि फिर मिलेंगे,
मिलना ही होता,
तो छोड़ता ही क्यों?
यादों,
तुम बेड़ियाँ हों मेरे पाँवों की,
मैं जब भी चलता हूँ,
तुम रोक लेती हो मुझे,
ऐसे तो नहीं रोकती थी
मेरी अपनी बेटी भी मुझे.
यादों,
किस हक़ से रोकती हो मुझे,
तुम्हारा रिश्ता तो घटनाओं से है,
घटनाओं ने तो एक बार ही तड़पाया,
तुम तो बार-बार तड़पाती हो मुझे.
यादों,
कम-से-कम इतना लिहाज़ तो रखो
कि मेरे बेडरूम में न घुसो,
अक्सर जब तुम आती हो,
मेरी आँखें नींद से बोझिल होती हैं,
मुझे आराम की सख़्त ज़रूरत होती है.
यादों,
मैं जानता हूँ कि मेरी बातें फ़िज़ूल हैं,
जानता हूँ कि बहुत ज़िद्दी हो तुम,
बहुत बार विदा किया तुम्हें,
पर तुमने मेरा पीछा ही नहीं छोड़ा.
यादों,
यह कैसा एकतरफ़ा प्यार है,
जिसमें ख़ुद पर आंच तक नहीं आती,
पर जिससे प्यार करो, वह तबाह हो जाता है.
वाह
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी,गहन भावाभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंयादों पर किसका बस चला है, जिसका चला बस उसी ने ख़ुद को नहीं छला है
जवाब देंहटाएंवाह! ओंकार जी ,बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंकिस हक़ से रोकती हो मुझे...
जवाब देंहटाएंवाह। सुंदर अभिव्यक्ति सर👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻🙏🏻
सुन्दर कृति
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