दोस्त,
मुझे माफ़ करना,
मैं ज़रा भारी हूँ,
मुश्किल है मुझे उठाना,
ख़ासकर तब,
जब उठानेवाले कमज़ोर हों.
दोस्त,
यह कहाँ लिखा है
कि चार लोग ही उठाएँगे,
आठ क्यों नहीं हो सकते,
ख़ासकर तब,
जब उठाना मुझ जैसे को हो.
दोस्त,
कभी किसी को
नहीं उठाना पड़ा मुझे,
मैंने ही उठाया सबको,
अब जबकि मैं मजबूर हूँ,
क्या वे नहीं उठा सकते मुझे,
जिन्हें मैंने हमेशा उठाया?
दोस्त,
मैं उन सबसे माफ़ी माँगता हूँ,
जिनके कंधे दुखेंगे,
अगर मुझे पहले से भनक होती,
तो मैं कोशिश करता
कि जीते जी मेरा
वज़न कम हो जाय.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 23 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंज़माना बदल रहा है कंधे मिलेंगे भी नहीं पता नहीं | सुन्दर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना आजकल कोई किसी का वजन उठाना नहीं चाहता।
जवाब देंहटाएंभाव विभोर करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजिनको वजन उठाना होगा, वो हल्का भारी कहां देखेंगे।
कटु मगर मार्मिक सत्य !
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