हवा के झोंके, चले आओ,
उड़ा लाओ बादल बरसनेवाले,
यहाँ सब बैठे हैं इंतज़ार में.
सूख गई हैं सारी नदियाँ,
पत्थर-से हो गए हैं उनके तल,
सूखे पत्ते छाती से चिपकाए
निढाल से खड़े हैं पेड़.
मारे प्यास के अधमरी,
पस्त सी पड़ी है ज़मीन,
जी-भर भीगने की आस में
बड़े हो रहे हैं नन्हे-मुन्ने।
भर भी दो नदियाँ -बावड़ियाँ,
सींच भी दो प्यासे पेड़ों को,
पिला भी दो जी-भर के पानी,
मिटा दो ज़मीन की प्यास,
महसूस करने दो मासूमों को
नन्ही-नन्ही बारिश की बूँदें
अपनी मुलायम हथेलियों पर.
अब तो रहम खाओ,
बादलों को साथ लेकर
हवा के झोंके, चले आओ.
बहुत खूब.... लाजवाब कविता👌
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रार्थना !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब मन की उड़ान
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