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रविवार, 7 जनवरी 2024

७५१. प्यार और पसंद



तुम्हारे हाव-भाव,

तौर-तरीक़े, चाल-ढाल 

मुझे बिल्कुल पसंद नहीं,

मैं आँखें बंद करके सोचूँ,

तो भी कुछ ऐसा नहीं दिखता,

जो मैं पसंद करूँ तुममें,

पर न जाने क्यों,

तुम्हारा दुःख मुझसे 

सहा नहीं जाता,

तुम्हारी ज़रा-सी तकलीफ़ 

मुझे बेचैन कर देती है,

न जाने क्यों मुझे हर वक़्त 

तुम्हारा ही ख़्याल रहता है. 

कभी-कभी मैं सोचता हूँ 

कि काश मैं तुम्हें प्यार नहीं करता,

जैसे कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करता. 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ९ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ९ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. प्यार दिल से होता है जिस पर किसी का वश नहीं, पसंद दिमाग़ से होती है जो सदा उल्टा-सीधा चलता ही रहता है

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