राग दिल्ली वेबसाइट (https://www.raagdelhi.com/) पर प्रकाशित मेरी कविता.
सालों बाद मिली हो तुम,
तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियाँ,
आँखों के नीचे काले घेरे हैं,
वज़न थोड़ा बढ़ गया है,
चांदी-सी फैल गई है बालों में।
मैं भी कहाँ रहा पहले-सा,
चलता हूँ, तो पाँव लड़खड़ाते हैं,
घुटनों में दर्द रहता है,
आँखों से कम दिखता है,
बाल तो ग़ायब ही हो गए हैं।
कहाँ सोचा था
कि ऐसे भी मुलाक़ात होगी,
न तुम पहचानोगी मुझे,
न मैं पहचानूँगा तुम्हें।
तुमसे मिलकर अच्छा भी लगा
और नहीं भी,
तुम्हें भी ऐसा ही लगा होगा,
समझ में नहीं आता
कि हमारे मिलने को क्या कहूँ,
घटना या दुर्घटना?
संसार का हर क्षण परिवर्तन शील है कुछ भी एक सा कभी नहीं रहता समय और परिस्थितियों के अनुसार इंसान तो क्या ज़ज़्बात भी बदल जाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अगस्त २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसमय चक्र की रवानी के बदलाव को प्रदर्शित करती भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ।
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