वह वही करती थी,
जो वह कहता था,
वैसे ही रहती थी,
जैसे वह रखता था,
वही बोलती थी,
जो वह चाहता था.
मैंने कभी नहीं देखा उन्हें उलझते,
कभी नहीं खड़के उनके घर बर्तन,
रातों को शांत रहता था उनका घर,
कोई सिसकी नहीं आती थी वहाँ से.
सालों बाद मैंने जाना
कि दुःखी होने के लिए
ज़रूरी नहीं होता रोना
और नहीं सिसकने का मतलब
नहीं होता ख़ुश होना.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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ओह, बहुत सुन्दर काव्यात्मक उद्बोधन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंwahhh!!!! आपकी कविताएँ सदा ही अच्छी होती हैं, और ये वाली दिल को कचोटती है!
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