पिता,
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने जाना
कि गहरे धंसे हुए हो तुम
मेरे अंदर,
फैलती ही जा रही हैं
तुम्हारी जड़ें,
मरे नहीं हो तुम,
पहले से ज़्यादा ज़िंदा हो,
मरने के बाद तुम मुझमें.
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पिता,
बहुत दिन हुए
तुम्हारी आवाज़ सुने,
कभी मैं भी आऊंगा,
लेटूँगा तुम्हारी बग़ल में,
तुम कुछ कह पाओगे न,
मैं कुछ सुन पाऊंगा न ?
मार्मिक कविता !
जवाब देंहटाएंहर बच्चा आदमी का पिता होता है, क्योंकि उसके आने से ही हुआ है पिता का जन्म, वे दो होकर भी एक हैं !
मरे नहीं हैं पिता,
जवाब देंहटाएंपहले से ज़्यादा ज़िंदा हैं वे
मरने के बाद मुझमें.
मर्मस्पर्शी सृजन ।
सच में माता पिता दुनिया से जाने के बाद भी हमेशा मन में बसे ही रहते हैं कहीं नहीं जाते। हृदयस्पर्शी कविता ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०५ -०२-२०२३) को 'न जाने कितने अपूर्ण प्रेम के दस्तक'(चर्चा-अंक-४६३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह! बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंओंकार जी, मार्मिक कविता ❗️
जवाब देंहटाएंनमस्ते 🙏❗️
मेरी आवाज में संगीतबद्ध मेरी रचना 'चंदा रे शीतल रहना' को दिए गए लिंक पर सुनें और वहीं पर अपने विचार भी लिखें. सादर आभार 🌹❗️--ब्रजेन्द्र नाथ
बहुत ही मर्मस्पर्शी सृजन
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