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शुक्रवार, 25 मार्च 2022

६४१. नदी और पत्थर

 


नदी किनारे एक पत्थर

सालों से ऐसे ही पड़ा है,

चाहता है किसी के काम आए,

उस पर भी कोई चलाए

कभी छैनी-हथौड़ा।

**

नदी ने बड़े पत्थर को

घिस-घिस कर छोटा कर दिया है,

पत्थर ख़ुश है

कि वह चमका तो सही।

**

नदी किनारे पड़ा पत्थर

अपनी जगह नहीं छोड़ेगा,

साथ रहा है लहराती नदी के,

अब जब वह सूख गई है,

पत्थर उसे छोड़कर

कहीं नहीं जाएगा।

**

बूढ़ी हो गई है नदी,

अब नहीं आ पाती

किनारे के पत्थरों तक,

पर जब कभी आती है,

सब को भिगो जाती है।

**

नदी किनारे पड़ा पत्थर

अरसे से इंतज़ार में है 

कि कोई लहर आए,

तरोताज़ा कर दे उसको भी।

**

बहुत दिनों से नहीं मिली

किनारे के पत्थरों से नदी,

पत्थर गुमसुम हैं,

नदी की भी आँखें गीली हैं।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों से नहीं मिली
    किनारे के पत्थरों से नदी,
    पत्थर गुमसुम हैं,
    नदी की भी आँखें गीली हैं।
    हृदयस्पर्शी और भावपूर्ण सृजन ।

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  2. नदी हमारे जीवन की प्रेरणा है, सराहनीय सृजन ।

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  3. नदी लबालब भरी रहे
    पत्थरों को नहलाती रहे.
    अच्छा लगता है.

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  4. पत्थरऔर नदी का रिश्ता अटूट है फिर भी बहुत रंग हैं इनके रिश्तों के।बहुत ही बढिया लिखा है आपने।बधाई और शुभकामनाएं ओंकार जी 🙏🙏

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