सपेरे,
सावधान रहना,
जो साँप तुमने पाल रखे हैं,
तुम्हें भी डस सकते हैं.
**
सपेरे,
जब साँप नाचे,
तो तुम भी नाचो,
किसी के साथ नाचना
अकेले नाचने से बेहतर है.
**
सपेरे,
तुम्हें लगता है
तुम साँप को नचा रहे हो,
पर ध्यान से देखो,
तुम उसे नहीं,
वह तुम्हें नचा रहा है.
**
सपेरे,
साँप को पिटारी में बंद कर
बेफ़िक्र मत हो जाना,
तुम्हें डसने के लिए उसका
खुला होना ज़रूरी नहीं है.
**
सपेरे,
बहुत नचाया तुमने साँप को,
अब ख़ुद भी नाच लो,
नाचने का मज़ा ही कुछ और है,
अगर कोई नचाए नहीं.
ओंकार जी,प्रणाम ...बहुत सुंदर रचना कि...किसी के साथ नाचना
जवाब देंहटाएंअकेले नाचने से बेहतर है...एक बड़ा संदेश देती रचना
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 14 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14 मार्च 2022 ) को 'सपेरे, तुम्हें लगता है तुम साँप को नचा रहे हो' (चर्चा अंक 4369) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सपेरे,
जवाब देंहटाएंतुम्हें लगता है
तुम साँप को नचा रहे हो,
पर ध्यान से देखो,
तुम उसे नहीं,
वह तुम्हें नचा रहा है..
सही कहा आपने...सांप और सपेरा
गूढ़,दिव्य दृष्टि.. निःशब्द।
सँपेरे के बहाने जीवन के गहन तथ्य ! अहंकार रूपी साँप को हम पाले रहते हैं और वह हमें नचाता है
जवाब देंहटाएंअभी नाचने का ही मौसम चल रहा
जवाब देंहटाएंऋतु के ताल पर चाहे नेताओं के
सुन्दर रचना
सपेरे,
जवाब देंहटाएंबहुत नचाया तुमने साँप को,
अब ख़ुद भी नाच लो,
नाचने का मज़ा ही कुछ और है,
अगर कोई नचाए नहीं.
.. वाह कितना कुछ कह दिया आपने
आज यही तो कौन किसको नचा रहा है, यह समझना हर किसी के बूते में नहीं
न सपेरे न सापों की कमी है, बहुतेरे है अगल-बगल , यहाँ वहाँ, कुछ समझ आते हैं कुछ नहीं
गूढ़ार्थ लिए सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
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