बहुत दिन हुए,
बालकनी में चलते हैं,
बात करते हैं.
ऐसे बात करते हैं
कि मुंडेर पर बैठी चिड़िया
बिना डरे बैठी रहे,
कलियाँ रोक दें खिलना,
सूखे पत्ते चिपके रहें शाखों से,
हवाएं कान लगा दें,
दीवारें सांस रोक लें,
ठिठककर रह जाएं
सूरज की किरणें.
आज कुछ बात करते हैं,
इस तरह बात करते हैं
कि बात करना छिपा न रहे,
पर बात का पता भी न चले.
आज कुछ अलग करते हैं,
होंठों को सिल लेते हैं,
आज आँखों से बात करते हैं.
वाह ! सारी प्रकृति सुन ले और हम कुछ कहें भी न ! भावपूर्ण सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह
जवाब देंहटाएंवाह! ओंकार जी ,शानदार सृजन!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 27 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
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