समय जो बीत रहा है,
आओ,आख़िरी बूंद तक
उसका रस निचोड़ लें,
उसके बीजों को बो दें,
कहीं व्यर्थ न चला जाए
उसका छिलका भी.
देखते ही देखते
सर्र से निकल जाएगा समय,
जब वह निकल जाए,
तो अफ़सोस न रहे
कि जो फिर कभी
लौटकर आने वाला नहीं था,
उसे हमने यूं ही जाने दिया.
जी नमस्ते ,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०७-०५-२०२३) को 'समय जो बीत रहा है'(चर्चा अंक -४६६१) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है। सादर
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति।
सुन्दर सृजन
बहुत ही सुन्दर और सामयिक रचना
thanks for sharing this poem your poems very best
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०७-०५-२०२३) को 'समय जो बीत रहा है'(चर्चा अंक -४६६१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंthanks for sharing this poem your poems very best
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