मैंने जो कविता लिखी है,
उसे अभी पैना कर रहा हूँ.
जो सुनना नहीं चाहते,
कान बंद कर लें अपने,
पर जो सुनना चाहते हैं,
वे भी सावधान रहें,
अच्छी तरह सोच लें,
क्या ऐसी कविता सुन सकेंगे,
जो दिल में चुभ जाय
तीर की तरह?
मैं कवि हूँ,
चाहता तो हूँ कि मुझे सुना जाय,
पर नहीं लिख सकता मैं
किसी के चाहने भर से
कोई फूल-सी कविता.
wah!!! Sach hai!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-05-2023) को "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंमैं कवि हूँ,
चाहता तो हूँ कि मुझे सुना जाय,
पर नहीं लिख सकता मैं
किसी के चाहने भर से
कोई फूल-सी कविता.
बिलकुल सच लिखा आपने।
बनावटी लिखने से अच्छा है, मत लिखा जाय ।
सरलता से गंभीर संदेश देती लाजवाब रचना ।
जवाब देंहटाएंना लिखते हुए बहुत कुछ लिखती...
जवाब देंहटाएंना कहते हुए बहुत कुछ कहती...अच्छी कविता।