पुल,
क्या तुम्हारा मन नहीं करता
कभी नदी से मिलने का,
या तुम इतने सालों से
उसे देखकर ही ख़ुश हो?
पुल,
अपनी सुविधा के लिए दूसरों ने
तुम्हें किनारों से जकड़ दिया है,
वे तुम्हारे सहारे नदी पार कर रहे हैं,
पानी में डुबकी भी लगा रहे हैं,
पर तुम चुपचाप देख रहे हो.
पुल,
अगर नदी से मिलना चाहते हो,
तो टूटना होगा तुम्हें,
कब तक इंतज़ार करोगे
कि नदी ख़ुद उठे
और तुम्हें गले लगा ले?
सुंदर सार्थक रचना ।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ll
वाह
जवाब देंहटाएंलेकिन पुल टूट जाएगा तो सियासत शुरू हो जाएगी
जवाब देंहटाएंचिन्तनपरक शैली .., लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंमान्यवर ! आपने ॥ पुल ॥ कि मन को सुना समझा और बड़े सहज़ता से उसे शब्द में पिरोया है / /
जवाब देंहटाएंउम्दा !
वाह! सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएं