अपने गांव में मैं
पुराना गांव खोजता हूँ.
बेख़ौफ़ खड़े
पीपल के पेड़,
वे कच्चे रास्ते,
लबालब भरे कुएं,
घरों के सामने रखे
वे तुलसी के पौधे.
वे मंदिर की घंटियां,
वह गायों का रंभाना,
चिड़ियों का चहचहाना,
लोगों का बतियाना.
यहाँ की हवाओं में अब
पहले-सी ताज़गी नहीं है,
न फूलों की महक है,
न घरों से उठती
नाश्ते की ख़ुशबू है.
मैं दस्तक देता हूँ
अनचिन्हे दरवाज़ों पर,
खोजता हूँ पुराने चेहरे,
पर जो भी मिलता है,
पूछता है, ‘कौन हो?
कहाँ से आए हो?’
अब यहाँ पहले-सा
कुछ भी नहीं है,
मुझे तो शक़ है
कि क्या यही वह जगह है,
जहाँ किसी ज़माने में
मेरा गांव हुआ करता था.
शहरों से गाँव की ओर लौटे व्यक्ति की मनोदशा के साथ गावों के बदलते परिवेश का शाश्वत चित्रण । बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा है गांवों की दशा पर ।
जवाब देंहटाएंचिंतनपूर्ण विषय पर उत्कृष्ट रचना ।
चेहरे बदल जाते हैं समय के साथ जैसे गाँव ...
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