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मंगलवार, 10 जनवरी 2023

६९१. गाँव का स्टेशन



पैसेंजर के सिवा यहाँ 

नहीं रुकती कोई भी ट्रेन ,

सब वहीं रुकना चाहते हैं,

जहाँ सब रुकते हैं. 

**

सर्र से निकलने वाली ट्रेनें भी 

सीटियां बजाती आती हैं,

जो रुकते नहीं हैं,

उन्हें भी अच्छा लगता है 

दूसरों का मज़ाक़ उड़ाना. 

**

मैं, मेरा स्टेशन मास्टर

और एक चौकीदार,

मस्त हैं हम आपस में,

कोई भी अकेला नहीं है

हम तीनों में से. 

**

रात भर गुज़रती हैं 

रेलगाड़ियां मेरी बग़ल से,

उचटती रहती है मेरी नींद,

जिन्हें रुकना नहीं होता,

वे इतना क़रीब क्यों आते हैं? 


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 जनवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. वाह! लाजवाब रचना! कविता की परिभाषा गढ़ती कविता!!!

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  3. सच सरल नहीं स्टेशन के पास रहना

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  4. "रात भर गुज़रती हैं
    रेलगाड़ियां मेरी बग़ल से,
    उचटती रहती है मेरी नींद,
    जिन्हें रुकना नहीं होता,
    वे इतना क़रीब क्यों आते हैं? "

    वाह! साहब, बेहतरीन। साधारण ढंग से बहुत बड़ी बात कह दिया आपने।

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