पैसेंजर के सिवा यहाँ
नहीं रुकती कोई भी ट्रेन ,
सब वहीं रुकना चाहते हैं,
जहाँ सब रुकते हैं.
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सर्र से निकलने वाली ट्रेनें भी
सीटियां बजाती आती हैं,
जो रुकते नहीं हैं,
उन्हें भी अच्छा लगता है
दूसरों का मज़ाक़ उड़ाना.
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मैं, मेरा स्टेशन मास्टर
और एक चौकीदार,
मस्त हैं हम आपस में,
कोई भी अकेला नहीं है
हम तीनों में से.
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रात भर गुज़रती हैं
रेलगाड़ियां मेरी बग़ल से,
उचटती रहती है मेरी नींद,
जिन्हें रुकना नहीं होता,
वे इतना क़रीब क्यों आते हैं?
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 जनवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंगूढ़ रहस्य भरा सवाल
जवाब देंहटाएंवाह! लाजवाब रचना! कविता की परिभाषा गढ़ती कविता!!!
जवाब देंहटाएंसच सरल नहीं स्टेशन के पास रहना
जवाब देंहटाएं"रात भर गुज़रती हैं
जवाब देंहटाएंरेलगाड़ियां मेरी बग़ल से,
उचटती रहती है मेरी नींद,
जिन्हें रुकना नहीं होता,
वे इतना क़रीब क्यों आते हैं? "
वाह! साहब, बेहतरीन। साधारण ढंग से बहुत बड़ी बात कह दिया आपने।
गहन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंये भी एक मुसाफिर की तरह हैं ...
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