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मंगलवार, 1 नवंबर 2022

६७६. कहाँ गया तुम्हारी आँखों का पानी?

 

(पिछले रविवार की शाम गुजरात के मोरबी में एक पुल टूटने से कम-से-कम 135 लोग मारे गए. इसी घटना से प्रेरित यह कविता.चित्र पीटीआई से साभार )




यहाँ का पानी शांत है,

पता ही नहीं चलता

कि पिछले दिनों यहाँ

कोई पुल टूटा था.


पानी को देखकर कहना मुश्किल है

कि उस शाम इतने सारे लोग 

सिर्फ़ पानी देखने वहाँ आए थे,

उनका कोई ग़लत इरादा नहीं था.


कई आटा गूंधकर आए थे,

कई सब्ज़ी काटकर आए थे,

कि वापसी में देर हो जाएगी,

उन्होंने कभी सोचा नहीं था

कि वे लौट नहीं पाएंगे.


पानी, इतने लोगों को लीलकर भी

तुम इतने शांत कैसे रह सकते हो,

तुम्हारा तो रंग भी नहीं बदला,

कहाँ गया तुम्हारी आँखों का पानी?


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 नवंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 03 नवंबर 2022 को 'समयचक्र के साथ बदलता रहा मौसम' (चर्चा अंक 4601) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  4. पानी, इतने लोगों को लीलकर भी
    तुम इतने शांत कैसे रह सकते हो,
    तुम्हारा तो रंग भी नहीं बदला,
    कहाँ गया तुम्हारी आँखों का पानी?
    मर्मस्पर्शी चिन्तन ।

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  5. जल का क्या कसूर...
    कुछ भी नहीं

    सवाल उपयुक्त मानवों तक जाए

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  6. दुःखद घटना है, ऐसी दुर्घटनाओं में कहीं न कहीं हम इंसानों की भूल ही छुपी रहती हैं, फिर भी सबक नहीं लेते हम

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  7. सामयिक विषय पर लिखी गई सठिक रचना, अभिनंदन ।

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