तुम जल्दी-जल्दी आया करो,
देर से जाया करो,
जब तुम आती हो,
तो लगता है,
एक लम्बा सप्ताह ख़त्म हुआ,
जब तुम जाती हो,
तो लगता है,
इतवार बीत गया.
***
आज दिल उदास है,
दिन ऊबाऊ है,
तुम आ जाओ अचानक,
जैसे किसी दिन
सुबह-सुबह याद आए
कि आज इतवार है.
***
अबके जब मिलो,
तो फ़ुर्सत से मिलना,
भागते-दौड़ते,
चेहरे पर तनाव लिए
सोमवार की तरह नहीं,
इतवार की तरह मिलना.
नौकरीपेशा व्यक्ति के जीवन में शनिवार की सांझ का और रविवार के सुख अवर्णनीय है और उसी सुख को किसी अपने के चेहरे पर अनुभव करना और भी अधिक सुखद । अभिनव और अभिराम कृति।
जवाब देंहटाएंकृपया - सुख का अवर्णनीय आनन्द है पढ़े 🙏
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-11-2022) को "भारतमाता की जय बोलो" (चर्चा अंक 4609) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंbahut sundar!
जवाब देंहटाएंभागते-दौड़ते,
जवाब देंहटाएंचेहरे पर तनाव लिए
सोमवार की तरह नहीं,
इतवार की तरह मिलना... क्या खूब कहा है...अद्भुत
भागम भाग भरी इस ज़िंदगी में सुकून देती भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंहम जैसे इस बात को बाखूबी समझ सकते, जिन्हें सुबह के 6से रात के 11कब बज जाते पता ही नहीं लगता।
जवाब देंहटाएंये इतवार...
दिल हो रहा आपकी सारी रचनाएं कॉपी कर लूं...