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बुधवार, 22 जून 2022

६५४.खूँटी

 


मुझे लगता है 

कि हर घर में 

एक खूँटी होनी चाहिए,

ख़ासकर हर उस घर में,

जहाँ कोई बड़ा-बूढ़ा रहता है,

जिसके लिए न कमरों में जगह है,

न आँगन में, न बालकनी में.


उसे भी जगह मिलनी चाहिए,

किसी खूँटी पर ही सही,

जहाँ उसे लटकाया जा सके,

जब तक कि वह मर न जाए.


5 टिप्‍पणियां:

  1. मन भीग गया आपकी रचना को पढ़ कर ।

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  2. सच में। बहुत पीड़ा देने वाली रचना।

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  3. ओह! मन काँप गया. पर सच यही है. एक खूँटी भी मिल जाए अपने ही घर में जो अब उसका न रहा, यह बड़ी बात होगी.

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  4. सच इस लघु कविता का मर्म बेहद विस्तृत है ।
    आज के परिवेश पर कुठाराघात करती सार्थक रचना।

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