माँ थाली में आटा लेती है,
मिलाती है उसमें थोड़ा-सा नमक,
थोड़ी-सी अजवाइन, थोड़ा-सा घी
और गूँध देती है सब कुछ एक साथ.
माँ थोड़े-से आलू लेती है,
टुकड़े करती है उनके
और छौंक देती है
प्याज,मिर्च,मसालों के साथ.
माँ भर देती है डिब्बे में
पूरियाँ,भाजी और थोड़ा-सा अचार,
रख देती है थैले में पानी के साथ
और पकड़ा देती है मुझे जाते-जाते.
भरपेट नाश्ता करके
मैं निकलता हूँ सफ़र पर,
मगर गाड़ी में बैठते ही
नज़र जाने लगती है थैले पर.
मैं अक्सर महसूस करता हूँ
कि जब भी माँ खाना बांधती है,
मुझे भूख बहुत लगती है.
बहुत खूब ... माँ के हाथ के खाने की बात ही अलग है ....
जवाब देंहटाएंमाँ का प्यार भूख भी खूब लगाता है । भवपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंअक्सर महसूस करता हूँ
जवाब देंहटाएंकि जब भी माँ खाना बांधती है,
मुझे भूख बहुत लगती है. ..बहुत सुंदर अनमोल भाव मां के लिए।
आपकी लिखी रचना सोमवार 13 जून 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मां के हाथ का खाना तो कभी भूला नहीं जा सकता ,सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह सत्य एवं सारगर्भित भाव |
जवाब देंहटाएंमाँ के हाथों की सोंधी खुशबू से लबालब सुंदर रचना सर।
जवाब देंहटाएंसादर
माँ के हाथ कहो या अंतस का प्यार।
जवाब देंहटाएंसच तो यही है।
सुंदर हृदय तक उतरता सृजन।
माँ के हाथों से बने पकवान का उसके बच्चे के पेट से सीधा कनेक्शन होता है.
जवाब देंहटाएंवाह…माँ के खाने की याद आ गई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंमाँ के हाथ के खाने की भूख या माँ के प्यार की भूख।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंमाँ के हाथ के खाने की भूख या माँ के प्यार की भूख।
माँ के हाथ के खाने की याद आ गई😊
जवाब देंहटाएंमाँ के हाथ से बना खाना याद आ गया । बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंएकदम सच है!
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