सुनो,
नए घर में जाओ,
तो पुराना सामान
ध्यान से देख लेना,
जो बेकार हो,
उसे फेंक देना,
जो काम का हो,
उसे रख लेना.
चादरें रख लेना,
धब्बे फेंक देना,
धागे रख लेना,
गांठें फेंक देना.
नए घर में जाओ,
तो छिड़क देना कमरों में
थोड़ी मुस्कराहट,
थोड़ा अपनापन,
थोड़ी उम्मीद
और कटोरी-भर प्रेम .
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 21 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन सर
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को "देश मेरा जान मेरी" (चर्चा अंक - 3588) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चादरें रख लेना,
जवाब देंहटाएंधब्बे फेंक देना,
धागे रख लेना,
गांठें फेंक देना.
लाजवाब ओंकार जी 👌👌🙏🙏🙏🙏
नए घर में जाओ,
जवाब देंहटाएंतो छिड़क देना कमरों में
थोड़ी मुस्कराहट,
थोड़ा अपनापन,
थोड़ी उम्मीद
और कटोरी-भर प्रेम .
भावपूर्ण रचना ,सादर
बहुत प्यारी नसीहत.
जवाब देंहटाएंख़ासकर, गांठों से मुक्ति पाना बहुत ज़रूरी होता है.
वर्ना उम्र भर दुखती हैं.
अच्छा लगा, ओंकारजी.
Very nice !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक भाव, बधाई.
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