वह कुरसी, जो आँगन में पड़ी है,
बहुत उदास है.
कभी वह बैठक में होती थी,
चमचम चमकती थी,
बड़ी पूछ थी उसकी,
अब वह पुरानी हो गई है,
चमक खो गई है उसकी,
झुर्रियों जैसी लकीरों से
भर गई है वह कुरसी.
एक हाथ टूट गया है उसका,
एक पांव भी ग़ायब है,
धीरे से भी हवा चलती है,
तो कांपती है वह कुरसी.
पास से गुज़रनेवालों को
हसरत से देखती है कुरसी,
कोई नहीं बैठता उस पर,
कोई नहीं रखता उससे कोई मतलब.
इन दिनों घबराई हुई है वह कुरसी,
डरती है कि बाहर न फेंक दी जाय
पूरी तरह टूटने से पहले,
आजकल नींद में चौंक जाती है कुरसी.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 19 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.... ,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन 👌
जवाब देंहटाएंवाह, कुर्सी को लेकर सटीक कटाक्ष किया है आपने । बधाई हो आदरणीय ओंकार जी।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२० -०१-२०२० ) को "बेनाम रिश्ते "(चर्चा अंक -३५८६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंकुर्सी को भी हमारी तरह पेंशन मिलनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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