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शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

३६७. भुतहा इमारत

इमारत बहुत उदास है.

न किसी बच्चे की हंसी,
न पायल की छमछम,
न किसी बूढ़े की खांसी,
न कोई कूकर की सिटी,
न बर्तनों की खड़खड़ाहट.

न कोई जन्मा यहाँ,
न कोई मरा,
न कोई कराहा,
न कोई सिसका.

कुछ भी नहीं हुआ यहाँ,
जब से यह भुतहा कहलाई.

इमारत अकेली है,
बहुत उदास है,
सोचती है,
'काश,कोई और नहीं,
तो भूत ही बसते मुझमें.' 



6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14 -07-2019) को "ज़ालिमों से पुकार मत करना" (चर्चा अंक- 3396) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  2. शायद भूत भी इंसान से हो के गुज़रते हैं ...
    बहुत लाजवाब ...

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  3. हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

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