वह हमेशा समय पर पहुंची स्टेशन,
पर चढ़ नहीं पाई किसी डिब्बे में,
उसे ठेल दिया हमेशा
चढ़नेवालों या उतरनेवालों ने,
प्लेटफ़ॉर्म पर ही छूटती रही वह।
देर से उसे समझ में आया है
कि ट्रेन में चढ़ने के लिए
काफ़ी नहीं है टिकट ले लेना,
समय से प्लेटफ़ॉर्म पर आ जाना,
डिब्बे तक पहुंच जाना।
उसे ज़्यादा ज़ोर लगाना होगा,
थोड़ा स्वार्थी, थोड़ा निर्मम होना होगा,
थोड़ी हिम्मत जुटानी होगी,
चीरना पड़ेगा भीड़ को,
तभी वह चढ़ पाएगी डिब्बे में,
तभी वह कर पाएगी यात्रा।