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सोमवार, 31 मई 2021

५७३. अपराध

 



सूरतें याद करो,

महसूस करो दर्द

कुछ इस तरह 

कि आँखों में आँसू आ जाएँ,

आँसू नहीं तो कम-से-कम

उदासी ही छा जाय चेहरे पर,

यह भी संभव नहीं,

तो भावहीन ही दिखो।


इस आपदा की घड़ी में 

जब जवान,बूढ़े,अपने-पराए

विदा हो रहे हों एक-एक करके,

जब कभी भी आ सकता हो 

कोई भी बुरा समाचार,

किसी भी बात पर ख़ुश होना

अपराध-सा महसूस होता है.  


शनिवार, 29 मई 2021

५७२. किरण


                                                                                                               



                                                                                                                                                               

इस कठिन समय में 

जब निराशा ने घेर लिया है                                     

हमें चारों तरफ़ से,           

बच गई है किसी कोने में 

थोड़ी-सी उम्मीद,

जैसे बंद खिड़की में 

रह गई हो कोई झिर्री,

जिससे घुस आई हो 

प्रकाश की किरण कमरे में. 


किरण इशारा कर रही है 

कि सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ,

किरण पूछ रही है 

कि असमय अँधेरा हो जाय,

तो खिड़कियाँ बंद कर लेना 

कहाँ की अक़्लमंदी है?


बुधवार, 26 मई 2021

५७१. कोरोना, प्रेम और दूरी



ठीक करती हो तुम 

कि दूर रहती हो मुझसे,

हो सकता है बच जाओ,

पर संभलकर रहना,

मैंने सुना है,

आजकल कोरोना हवाओं में है. 

**

तुम मुझसे दूर रहती हो,

पर मैं कोरोना नहीं हूँ,

यह संभव है 

कि मैं तुम्हारे पास रहूँ,

फिर भी तुम स्वस्थ रहो . 

**

मैं दूसरी लहर का कोरोना हूँ, 

पहली से ज़रा अलग हूँ,

दूर रहकर भी लग जाऊंगा,

तुम्हें पता भी नहीं चलेगा. 


रविवार, 23 मई 2021

५७०. सुनो कवि



सुनो कवि,

तुम्हें नहीं सुनती कोई कराह,

तुम्हें नहीं सुनता कोई क्रंदन,

पर कितना आश्चर्य है 

कि तुम्हें साफ़-साफ़ सुन जाती है 

कोयल की कूक. 

***

सुनो कवि,

तुम अंधे तो नहीं हो,

देख सकते हो,

बहरे भी नहीं हो,

सुन सकते हो,

फिर इस तांडव के बीच 

कैसे लिख लेते हो तुम 

कोई प्रेम कविता?

***

सुनो कवि,

मैं नहीं कहता 

कि तुम मत लिखो,

लिखो,ख़ूब लिखो,

पर सच लिखो।

याद रखना,

तुम्हारी अपनी आँखें 

तुम्हारी क़लम की ओर 

टकटकी बांधे देख रही हैं.


शुक्रवार, 21 मई 2021

५६९. कोरोना में इतवार

 




इतवार आ गया?

कब आया,

पता ही नहीं चला,

दूसरे दिनों जैसा ही है 

इतवार का दिन भी. 


घरों में बंद,

सूनी गली की ओर 

खिड़कियों से झाँकते 

या टी.वी. पर कोई 

देखा हुआ सीरियल 

फिर से देखते. 


कोई सिनेमा-हॉल,

कोई पिकनिक,

कोई बाज़ार,

कोई घुमक्कड़ी-

कुछ भी नहीं,

जैसे आया है,

वैसे ही चुपचाप 

चला जाएगा इतवार. 


एक से हो गए हैं 

अब सप्ताह के सारे दिन,

कोरोना ने छीन लिया है 

इतवार से उसका ताज.