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शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

817. पासवर्ड और कविता




मेरा पासवर्ड मेरी कविता की तरह है, 

मैं नहीं जानता उसका अर्थ, 

न ही वह मुझे याद रहता है। 


मेरे पासवर्ड में न लय है, 

न कोई मीटर,

मैं तो यह भी नहीं जानता 

कि उसकी भाषा क्या है,

भाषा है भी या नहीं।


फिर भी मैं जानता हूँ 

कि मेरे पासवर्ड में 

कुछ खोज ही लेंगे लोग, 

जैसे मेरे लिखे में 

कविता ढूँढ़ लेते हैं 

मेरे पाठक। 


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