आइसक्रीम वाला आता था,
तो आ जाते थे
मोहल्ले के सारे बच्चे,
यह उन दिनों की बात है,
जब फ़्रिज़ नहीं होते थे घरों में,
जब नहीं होती थी आइसक्रीम
सिर्फ़ आइसक्रीम.
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वह बच्चा, जो रोज़ बेचता है
मोहल्ले में आइसक्रीम ,
अक्सर सोचता है,
अगर वह बेचनेवाला नहीं,
ख़रीदनेवाला होता,
तो वह भी खा सकता था
कभी-कभार कोई आइसक्रीम।
हम लोगों के लिए तो पाँच रुपये की आइसक्रीम ही सबसे बड़ी आइसक्रीम होती थी आइसक्रीम वाले की आवाज सुनकर ही मुहँ में पानी आ जाता था , दूसरी तरफ कुछ बच्चे ऐसे भी थे जो पाँच - पाँच रुपये कमाने और रोजी की जुगत के लिए अपनी इच्छा को दबा कम उम्र में ही बड़े हो जाया करते थे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चिंतन परक सृजन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपकी लिखी यह रचना पाँच लिंक में प्रकाशित की गयी है सर ,कृपया आमंत्रण अपने पेज के कमेंट वाले भाग मे देखे स्पैम में होगी।
जवाब देंहटाएंसादर।
बालमन को टटोलती शानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन, आइसक्रीम तब कुछ और भी होती थी, केवलआइसक्रीम नहीं !!
जवाब देंहटाएंजो नहीं खा पाते शायद उनके लिए भीआइसक्रीम केवलआइसक्रीम नहीं होती, एक उम्मीद भी होती है
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसही कहा ..
जवाब देंहटाएंजो नहीं मन बस उसे चाहता है..
सुंदर सृजन ।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंबीते वक़्त की यादें ताज़ा हो गईं ...
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