इन दिनों आसमान में
नहीं दिखते बादल,
धुआँ दिखता है,
नहीं कड़कती बिजली,
बमों के धमाके होते हैं,
नहीं होतीं बौछारें,
मिसाइलें बरसती हैं ।
इन दिनों आसमान में
नहीं उड़ते परिंदे,
लड़ाकू विमान दिखते हैं,
ड्रोन उड़ते हैं।
इन दिनों आसमान में
न सितारे दिखते हैं, न चाँद,
रह-रहकर कौंध जाती हैं
प्रकाश की कटारें।
बहुत दिनों से आसमान में
नहीं दिखा सूरज,
शायद हमारी तरह वह भी
बहुत डरता है युद्ध से।
सच में अपनी किस धुन में आकर मानव दानव बना जा रहा है , उसे इसका कुछ पता ही नहीं ... अपना सबकुछ तो वह खो रहा फिर भी न जाने कौन सा अंहकार पाले बैठा है कि खुद के विनाश को भी स्पष्ट नहीं देख पा रहा है । इसका अंत भी है कि नहीं ?
जवाब देंहटाएंkya baat kahi hai!
जवाब देंहटाएंkya baat kahi hai!
जवाब देंहटाएंनहीं दिखा सूरज शायद
जवाब देंहटाएंबहुत डरता है युद्ध से।
गहन चिन्तन
सादर