मैं बड़ा हुआ,
तो मेरे पाँवों में आने लगे
पिता के जूते,
मेरी आँखों पर चढ़ गया
पावरवाला चश्मा,
पर पिता का चश्मा
मुझे फ़िट नहीं बैठता था
दोनों के नंबर जो अलग थे।
कहने को तो हो गया
मैं पिता के बराबर,
पर कभी नहीं देख पाया
चीज़ों को उस तरह,
जैसे पिता देखते थे।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 8 जून 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच बात है।
जवाब देंहटाएंभावुक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं