कभी जूते उतारो,
नंगे पाँव चलो,
जिस धूल को तुम
रौंदते आए हो,
चिपकने दो
उसे अपने बदन से,
दूर मत भागो,
वह तुम्हारी अपनी है।
महसूस करो उसका स्पर्श,
आदत डाल लो उसकी,
भूलो नहीं
कि यह धूल ही है,
जिससे आख़िर में
तुम्हें मिलना है।
बहुत ही सुंदर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 24 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!!
सुन्दर
क्षणभंगुर जीवन के शाश्वत का बोध कराती सुन्दर अभिव्यक्ति ।
वाह! सुन्दर सृजन!
धूल चंदन बन जाती है जब देश का सैनिक माथे से लगाता है, धूल पावन बन जाती है जब शिष्य गुरु चरणों से लेकर माथे से लगाता है
wah!!! shashwat satya!
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 24 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुन्दर
जवाब देंहटाएंक्षणभंगुर जीवन के शाश्वत का बोध कराती सुन्दर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंवाह! सुन्दर सृजन!
जवाब देंहटाएंधूल चंदन बन जाती है जब देश का सैनिक माथे से लगाता है, धूल पावन बन जाती है जब शिष्य गुरु चरणों से लेकर माथे से लगाता है
जवाब देंहटाएंwah!!! shashwat satya!
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