वंदे भारत,
तुम्हें बार-बार वंदे,
गर्व होता है
तुम्हारी रफ़्तार देखकर,
पर कितना अच्छा होता
अगर तुम हमारे यहाँ रुकती,
कभी हम भी बैठ पाते
तुम्हारी किसी बोगी में।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें