मेरे पाँवों में लोहे की बेड़ियाँ सही,
मेरे ख़्याल अब भी आज़ाद हैं,
जैसे नदी को बाँध लेने से
चुप नहीं हो जाता उसका संगीत.
मेरे चारों ओर दीवारें सही,
मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ,
जैसे फूलों को क़ैद किया जा सकता है,
उनकी ख़ुश्बू को नहीं.
मेरे बदन का हर हिस्सा मजबूर सही,
पर मेरे महबूब उदास न हो,
अभी ऐसी बेड़ियाँ नहीं बनीं,
जो पहनाईं जा सकें मन को,
ऐसा कारागार नहीं बना,
जो क़ैद कर सके भावनाओं को.
सच है
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 13 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह ! ये हौसला बना रहे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह ! तन क़ैद हो सकता है पर मन ! मुक्त है
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... सच में मुश्किल है ...
जवाब देंहटाएं