रिटायरमेंट की अगली सुबह
मैं अच्छे मूड में था,
अख़बार खोल रखा था,
इत्मीनान से पढ़ रहा था,
बीच-बीच में गर्म चाय की
चुस्कियाँ भी चल रही थीं.
सोचा,बेटी,जो बड़ी हो गई थी,
उससे ख़ूब बातें करूंगा,
सालों बाद फ़ुर्सत मिली थी,
सालों की क़सर पूरी करूंगा.
अचानक वह अंदर से आई
और सर्र से निकल गई,
अब जब मेरे पास फ़ुर्सत थी,
उसके पास वक़्त नहीं था.
(photo: courtesy Pixabay)
महानगरों की भाग-दौड़ से कभी किसी को रिटायरमेंट मिलता ही नहीं, वह तो ट्रांसफर हो जाता है
जवाब देंहटाएंसटीक
सही कहा रिटायरमेंट के बाद फुर्सत है पर बढ़ते बच्चों के पास वक्त कहाँ ..वे अपनी पढ़ाई कैरियर में व्यस्त हैं।
जवाब देंहटाएंजो छूट गया सो छूट गया
बहुत सुंदर विचारणीय सृजन।
सबका अपना वक़्त होता है । अब फुरसत के क्षणों को कैसे व्यतीत करना है ये आपके स्वयं के ऊपर निर्भर है । किसी से उम्मीद न करें ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०५-२०२२ ) को
'सुलगी है प्रीत की अँगीठी'(चर्चा अंक-४४४४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह वाह!फ़ुर्सत जएँ बहाने सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकटु सत्य।
जवाब देंहटाएंयथार्थ चित्रण ।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक शब्द ...लाज़वाब !
जवाब देंहटाएंआज की दौड़ भाग वाली ज़िंदगी का कड़वा सच जो आपने अपने शब्दों के जरिये एक मोती की माला बना के अपने लेख में डाल दिया है। बहुत ही सूंदर और दिल को छू लेने वाली कविता। आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस कविता के लिए। आशा करता की आपको मेरा लेख भी पसंद आएगा। हनुमान चालीसा
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