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शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

४९०. कैसे लोग हो तुम?



कैसे लोग हो तुम,

जो लड़ते ही रहते हो,

कभी किसी छोटी,

तो कभी बड़ी बात पर,

कभी इस बात पर,

तो कभी उस बात पर.


अगर एक बार लड़ाई 

शुरू हो जाय,

तो उसे बढ़ाते ही रहते हो,

ख़त्म ही नहीं करते.


तुम ख़ुद को बड़ा कहते हो,

पर तुमसे अच्छे तो बच्चे हैं,

जो अगर आज लड़ते हैं,

तो कल साथ खेलने लगते हैं.

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 11 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 12 अक्टूबर 2020) को 'नफ़रतों की दीवार गहरी हुई' (चर्चा अंक 3852 ) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. तुम ख़ुद को बड़ा कहते हो,
    पर तुमसे अच्छे तो बच्चे हैं,
    जो अगर आज लड़ते हैं,
    तो कल साथ खेलने लगते हैं.
    सही बात..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  4. तुम ख़ुद को बड़ा कहते हो,

    पर तुमसे अच्छे तो बच्चे हैं,

    जो अगर आज लड़ते हैं,

    तो कल साथ खेलने लगते हैं.,,।।।।सटीक एवं एवं सुंदर रचना ।

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