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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

४९५. बच न जाय रावण



इस बार दुर्गापूजा फीकी है,

पंडालों में भीड़ कम है,

संगीत थोड़ा धीमा है,

रौशनी कुछ मद्धिम है,

लोग ज़रा सहमे से हैं,

देवी उदास-सी दिखती है.


दूर मैदान में खड़ा 

अट्टहास कर रहा है रावण,

मुझे डर है 

कि इस बार दशहरे में 

कहीं वह बच न जाय.

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (25-10-2020) को    "विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार"  (चर्चा अंक- 3865)     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    विजयादशमी (दशहरा) की 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. दूर मैदान में खड़ा

    अट्टहास कर रहा है रावण,

    मुझे डर है

    कि इस बार दशहरे में

    कहीं वह बच न जाय.

    कोविड के रूप में फैला है विश्व भर में वह...
    बहुत सुन्दर।

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  3. विजयोत्सव की हार्दिक बधाई
    इस भयावह काल में अगर राम रावण दुर्गा काली की बात बची हुई है तो अब चिंतन के लिए भी कुछ नहीं बचा है

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  4. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ओंकार जी, कोरोना काल में रावण के बचे रह जाने की आशंका को...बहुत खूब ल‍िखा आपने ।

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  5. मुझे डर है

    कि इस बार दशहरे में

    कहीं वह बच न जाय.सुन्दर व सत्य को उजागर करती रचना। विजयादशमी की असंख्य शुभकामनाएं - - नमन सह।

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  6. दूर मैदान में खड़ा
    अट्टहास कर रहा है रावण,
    मुझे डर है
    कि इस बार दशहरे में
    कहीं वह बच न जाय...
    चिंतन परक सृजन..विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  7. सुन्दर सृजन। मुझे मानव की जिजीविषा पर भरोसा है वह ऐसे रावणों का सामना करता आया है। आगे भी करता आएगा। आभार।

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