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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

४८९. शिव से




शिव,

तुम अनाचार देख रहे हो न,

कौन किसके गले में 

सांप डाल रहा है,

ख़ुद अमृत पीकर 

दूसरों को विषपान करा रहा है,

कौन ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर 

कर्तव्य की गंगा का बोझ 

दूसरों के सिर डाल रहा है.


कौन है,

जो ख़ुद रह रहा है 

आलीशान इमारतों में 

और दूसरों को भेज रहा है 

हिमालय के एकांत में,

ख़ुद भोग रहा है सारे सुख 

और दूसरों को रख रहा है 

नंग-धडंग....


शिव,

कब खोलोगे तुम तीसरा नेत्र,

कब बजेगा तुम्हारा डमरू, 

कब चलेगा तुम्हारा त्रिशूल,

शिव, कब करोगे तुम तांडव?

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 8 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. क्या बात है! एक एक कविता उम्दा! कुछ ऐसा नहीं जो पहले पढ़ा हो। शिव अति की प्रतीक्षा करते हैं। शिव से पहले शक्ति उतरती है। यह शक्ति का काल है शायद।

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  3. अब शिवजी के तांडव की ही तो प्रतीक्षा है । अति सुंदर ।

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  4. वाह , शिव के तांडव की ही शायद सबको प्रतीक्षा है ।
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार ।

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  5. अब ज़रूरी है कि तीसरा नेत्र खुल जाए.

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