शिव,
तुम अनाचार देख रहे हो न,
कौन किसके गले में
सांप डाल रहा है,
ख़ुद अमृत पीकर
दूसरों को विषपान करा रहा है,
कौन ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर
कर्तव्य की गंगा का बोझ
दूसरों के सिर डाल रहा है.
कौन है,
जो ख़ुद रह रहा है
आलीशान इमारतों में
और दूसरों को भेज रहा है
हिमालय के एकांत में,
ख़ुद भोग रहा है सारे सुख
और दूसरों को रख रहा है
नंग-धडंग....
शिव,
कब खोलोगे तुम तीसरा नेत्र,
कब बजेगा तुम्हारा डमरू,
कब चलेगा तुम्हारा त्रिशूल,
शिव, कब करोगे तुम तांडव?
प्रतीकों के माध्यम से रची गई सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। हर हर महादेव।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 8 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंक्या बात है! एक एक कविता उम्दा! कुछ ऐसा नहीं जो पहले पढ़ा हो। शिव अति की प्रतीक्षा करते हैं। शिव से पहले शक्ति उतरती है। यह शक्ति का काल है शायद।
जवाब देंहटाएंअब शिवजी के तांडव की ही तो प्रतीक्षा है । अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह , शिव के तांडव की ही शायद सबको प्रतीक्षा है ।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार ।
अब ज़रूरी है कि तीसरा नेत्र खुल जाए.
जवाब देंहटाएंshiv ji se related ye post bahut achhi h
जवाब देंहटाएंyour post is awesome and fabulous.Dear viewers of this blog if you want share lots of images like good morning images,good night images,festival related images like HAPPY NAVRATRI IMAGES
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