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सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

821. कीचड़ और कमल

 

 


मैं जिससे निकला हूँ, 

असहज हूँ उससे, 

कहाँ मैं कमल,

कहाँ वह कीचड़, 

मैं ख़ुशबू से सराबोर, 

वह बदबूदार। 

कोई मेल नहीं 

मेरा और उसका, 

उसके साथ रहना 

उतना बुरा नहीं लगता, 

जितना उसके साथ दिखना। 

काश कि मैं जा पाता 

उससे बहुत दूर,

जैसे बच्चे चले जाते हैं 

गाँव से शहर 

कभी न लौटने के लिए।