धूल मेरे चेहरे पर नहीं,
दिमाग़ पर है।
कोई ऐसी झाड़ू नहीं,
जो झाड़ दे उसे,
कोई ऐसा पोंछा नहीं,
जो पोंछ दे उसे,
पानी उसे धो नहीं सकता,
हवा उसे उड़ा नहीं सकती।
जो धूल मुझमें है,
मुझे ही साफ करनी है,
वह जहाँ है,
कोई पहुँच नहीं सकता
मेरे सिवा,
पर मैं जानता हूँ
कि पहुँच गया,
तो उसे हटा भी दूँगा।
कोई धूल कितनी भी
ज़िद्दी क्यों न हो,
टिक नहीं सकती वह
संकल्प के सामने।
धूल जो मुझमें है,
जवाब देंहटाएंमुझे ही साफ करनी है,
सुंदर रचना
वंदन
बहुत गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २१ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सही कहा संकल्प दृढ हो तो कोई सामने टिक नहीं सकता
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कहा।
जवाब देंहटाएंek dum sach!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
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