आम का वह पौधा,
जो तुमने कभी रोपा था,
अब पेड़ बन गया है,
महकते बौर लगते हैं उसमें,
खट्टी कैरियाँ और मीठे फल भी।
उसके हरे-हरे पत्ते
हवाओं में मचलते हैं,
उसकी टहनियों पर बैठकर
पंछी चहचहाते हैं।
तुम भी चले आओ इस साल,
देख लो अपना लगाया पौधा,
नहीं बनाना घोंसला, तो न सही,
थोड़ी देर शाख पर बैठ जाना,
फिर चाहो, तो उड़ जाना।
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