बहुत आराम कर लिया, अब तो उठ,
सूरज आसमान में है, अब तो उठ.
कब तक बैठेगा मायूस होकर,
फ़िसल रहा है जीवन, अब तो उठ.
शर्म आ रही थी तुझे हाथ फैलाने में,
वह ख़ुद देने आया है, अब तो उठ.
किसी को नहीं मिलता बार-बार मौक़ा,
हो रही है दस्तक, अब तो उठ.
सुना नहीं तूने रोना बेक़सूरों का,
इन्तहाँ हो गई है अब, अब तो उठ.
आसान नहीं ख़ुद से नज़रें मिलाना,
आईना दिखाना है तुझे, अब तो उठ.
वैसे तो बंद हैं तेरे कान एक अरसे से,
ज़मीर पुकार रहा है, अब तो उठ.
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 18 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंकिसी को नहीं मिलता बार-बार मौक़ा,
जवाब देंहटाएंहो रही है दस्तक, अब तो उठ.
वाह !! अति सुन्दर !!
आसान नहीं ख़ुद से नज़रें मिलाना,
जवाब देंहटाएंआईना दिखाना है तुझे, अब तो उठ',,,,,,
बहुत सुंदर और सत्य को प्रेरित करती रचना,
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजब जागो तभी सवेरा, जग जोगी वाला फेरा
जवाब देंहटाएंशानदार रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ 🙏
जवाब देंहटाएंशर्म आ रही थी तुझे हाथ फैलाने में,
जवाब देंहटाएंवह ख़ुद देने आया है, अब तो उठ.
सुन्दर रचना . बहुत शुभकामनाएं .
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
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