मैंने बीस साल पहले
एक युवक को यहाँ देखा था,
फोटोकॉपी करवा रहा था वह
या शायद कुछ टाइपिंग,
उसने बड़े अजीब तरीक़े से
एक फ़ाइल बगल में दबा रखी थी।
उसके सिर पर घने काले बाल,
बदन पर अच्छे सिले कपड़े,
पाँवों में चमचमाते जूते थे,
उसके चेहरे पर मुस्कराहट
और आँखों में उम्मीद थी।
बीस साल बाद
आज मैं फिर उधर से गुज़रा,
मैंने देखा, एक बूढ़ा आदमी
फोटोकॉपी करवा रहा था
या शायद कुछ टाइपिंग,
उसके कपड़े फटे हुए थे,
वह घिसी हुई चप्पलें पहने था।
उसके चेहरे पर झुर्रियाँ,
आँखों में मायूसी थी,
सिर पर बाल लगभग नहीं थे,
कमर भी थोड़ी झुकी हुई थी।
उसने बड़े अजीब तरीक़े से
एक फ़ाइल बगल में दबा रखी थी,
इसी से मैंने पहचाना
कि यह वही आदमी था,
जिससे मैं बीस साल पहले मिला था।
सुप्रभात ! मान्यवर !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये ! दुर्गा पुजा कि ...
वक्त का तामझाम ... थोड़ी सी अधुरी सी ...
पर बहुत कुछ कह रही है आपकी रचना ...
सुन्दर ! अति सुन्दर !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 16 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंआप ने लिखा.....
जवाब देंहटाएंहमने पड़ा.....
इसे सभी पड़े......
इस लिये आप की रचना......
दिनांक 16/10/2023 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है.....
इस प्रस्तुति में.....
आप भी सादर आमंत्रित है......
अदालतों के चक्कर में लोग अक्सर घनचक्कर बन जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंwahhh!
जवाब देंहटाएंकडवा सच है जिसको झेलता है आम आदमी ...
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