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शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

७३८.अदालत के बाहर

 



मैंने बीस साल पहले

एक युवक को यहाँ देखा था, 

फोटोकॉपी करवा रहा था वह

या शायद कुछ टाइपिंग, 

उसने बड़े अजीब तरीक़े से

एक फ़ाइल बगल में दबा रखी थी। 


उसके सिर पर घने काले बाल, 

बदन पर अच्छे सिले कपड़े, 

पाँवों में चमचमाते जूते थे, 

उसके चेहरे पर मुस्कराहट

और आँखों में उम्मीद थी। 


बीस साल बाद 

आज मैं फिर उधर से गुज़रा, 

मैंने देखा, एक बूढ़ा आदमी

फोटोकॉपी करवा रहा था 

या शायद कुछ टाइपिंग, 

उसके कपड़े फटे हुए थे, 

वह घिसी हुई चप्पलें पहने था। 


उसके चेहरे पर झुर्रियाँ, 

आँखों में मायूसी थी, 

सिर पर बाल लगभग नहीं थे, 

कमर भी थोड़ी झुकी हुई थी। 



उसने बड़े अजीब तरीक़े से

एक फ़ाइल बगल में दबा रखी थी, 

इसी से मैंने पहचाना

कि यह वही आदमी था, 

जिससे मैं बीस साल पहले मिला था।


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! मान्यवर !
    शुभकामनाये ! दुर्गा पुजा कि ...

    वक्त का तामझाम ... थोड़ी सी अधुरी सी ...
    पर बहुत कुछ कह रही है आपकी रचना ...
    सुन्दर ! अति सुन्दर !

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 16 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  3. आप ने लिखा.....
    हमने पड़ा.....
    इसे सभी पड़े......
    इस लिये आप की रचना......
    दिनांक 16/10/2023 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है.....
    इस प्रस्तुति में.....
    आप भी सादर आमंत्रित है......


    जवाब देंहटाएं
  4. अदालतों के चक्कर में लोग अक्सर घनचक्कर बन जाते हैं

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  5. कडवा सच है जिसको झेलता है आम आदमी ...

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