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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

३३९. सवाल


देख लो आज मुझे चोटी पर,
तारीफ़ कर लो मेरी,
मुस्कराहट है मेरे होठों पर,
लेकिन एक कसक है दिल में -
मरना पड़ा है मुझे बार-बार,
तब पहुँच पाया हूँ इस बुलंदी पर.

आज शिखर पर हूँ मैं,
पर दिल में सवाल है 
कि मर-मर कर ऊपर पहुंचने से 
जीते हुए नीचे रहना 
क्या ज़्यादा अच्छा नहीं है?

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-12-2018) को "नये साल की दस्तक" (चर्चा अंक-3201) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत खूब... आदरणीय
    ..मर-मर कर ऊपर पहुँचने से
    जीते हुए नीचे रहना
    क्या ज्यादा अच्छा नही है।
    अच्छा तो है

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  4. चिन्तनपरक सुन्दर सी रचना ।

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