top hindi blogs

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

३३८.भँवर


मैंने खुला छोड़ रखा है 
अपने घर का दरवाज़ा,
इस उम्मीद में 
कि शायद भूला-भटका 
कोई दोस्त आ जाय 
या कोई अति उत्साही 
दुश्मन ही घुस आय.

दोस्त या दुश्मन न सही,
कोई चोर ही सही,
मेरे नीरस एकाकी जीवन में 
कुछ तो चहल-पहल हो,
इस ठहरे सरोवर में 
कोई लहर न सही,
कोई भँवर ही उठे. 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह !!! आजकल महानगरों में एकाकी जीवन की त्रासदी को अत्यंत कम, किंतु अत्यंत प्रभावपूर्ण शब्दों में व्यक्त कर दिया आपने।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बहुत खूब!
    लहर नही कोई भंवर ही उठे....

    जवाब देंहटाएं
  4. नीरस एकाकी जीवन में कोई लहर तो आनी चाहिए.....बहुत सुन्दर..

    जवाब देंहटाएं
  5. अकेलेपन में साहचार्य के अकाल से ग्रस्त मनोभाव।

    जवाब देंहटाएं