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शनिवार, 24 जून 2017

२६५.ज़रूरी

इश्क में थोड़ा झुकना भी ज़रूरी है,
लम्बा चलना है, तो रुकना भी ज़रूरी है.

यह सोच कर तमाचा सह लिया मैंने,
कुछ पाना है अगर, तो खोना भी ज़रूरी है.

आवाज़ दूँ कभी, तो देख लेना मुड़ के,
जीना है अगर, तो उम्मीद भी ज़रूरी है.

पत्थर जो फेंको, तो ज़रा ज़ोर से फेंको,
कोशिश जो की है, तो नतीज़ा भी ज़रूरी है.

कोई डर है जो दिल में, दिल ही में रखो,
चेहरे से हौसला झलकना ज़रूरी है.

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