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शुक्रवार, 30 जून 2017

२६६.विस्मृति

मैं कभी भूल जाऊं,
तो तुम मुझे याद दिला देना.

मुझे याद रहेगा,
कहाँ-कहाँ हैं हमारे मकान,
हमारे खेत, हमारी दुकान,
कहाँ-कहाँ हैं तुम्हारे गहने,
हीरे-मोती, सोना-चांदी,
किस-किस बैंक में हैं हमारे खाते,
किस स्कीम में जमा है कितनी पूँजी,
किसको दिया है कितना उधार.

सब कुछ रट सा गया है,
कुछ भी नहीं भूलूंगा मैं,
पर मुमकिन है, कभी भूल जाऊं 
कि तुम कौन हो.

कभी ऐसा हो जाय,
तो तुम मुझे याद दिला देना.

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर कविता....
    याद दिलाना भी प्रेम है :)

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  2. पर मुमकिन है, कभी भूल जाऊं
    कि तुम कौन हो.

    कभी ऐसा हो जाय,
    तो तुम मुझे याद दिला देना... एक सत्य दिल को छूता हुआ

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  3. वाह !!!
    मन के भीतर पलते सच का वास्तविक चित्रण
    बहुत खूब

    शुभकामनाएं

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  4. कविताएं अच्छी जरूर लगती हैं पर समझ कम है। तुकबंदी से आगे नहीं बढ़ पाया कभी :-)

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  5. बहुत सही .... ऐसे में समय में दूर ना हों बल्कि जुड़ने का भाव रखें ...

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  6. ओह ...भौतिक चीजें याद रहेंगी ....सहचर्य नहीं ...

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  7. लिखे शब्द प्रभावशाली हैं , लिखते रहें

    जाने कितने ही बार हमें, मौके पर शब्द नहीं मिलते !
    बरसों के बाद मिले यारो,इतने निशब्द,नहीं मिलते ! -सतीश सक्सेना
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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  8. बहुत खूब ... कितना कुछ याद रखना है जिंदगी में ...

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