२१९. आग
आग भभक उठी है,
तो दोष केवल तीलियों को मत दो,
आग लगाने के लिए
माचिस की डिबिया भी चाहिए,
थोड़ा तेल, थोड़ा घी,
थोड़ी टहनियां,थोड़ा घास-फूस
और सबसे बढ़कर वे हाथ,
जो सारा सामान इकठ्ठा कर दें.
अकेली तीलियों की क्या औकात
कि आग भड़का दें,
उन्हें तो बेअसर करने के लिए
बूँद-भर पानी ही बहुत है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-06-2016) को "लो अच्छे दिन आ गए" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अकेली तीलियों की क्या औकात
जवाब देंहटाएंकि आग भड़का दें, वाह.........
मुश्किल हालात में बूंद भर उम्मीद ही काफी होती है
जवाब देंहटाएंसकारात्मक व्याख्या
बधाई स्वीकारें...
http://rajeevranjangiri.blogspot.in/
सही कहा है ... बहुत कुछ होता है तभी आग लगती है ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति .......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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