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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

१८९. मेहमान

सड़कें बंद हैं,
रास्ता रोके खड़े हैं 
पुलिस के बैरियर,
आड़ी-तिरछी बेतरतीब 
बिखरी हुई हैं गाड़ियाँ,
सूई भर जगह नहीं सरकने को,
हाल बेहाल है 
धुएं और गर्मी से,
बीमार सोए हैं पिछली सीटों पर 
अस्पताल के इंतज़ार में,
आख़िरी सांसें चल रही हैं कइयों की,
कई मांओं ने जन दिए हैं 
ऑटो में ही अपने बच्चे. 

लगता है, कोई विशिष्ट मेहमान 
आज शहर में आया है. 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-11-2015) को "ज़िन्दगी दुश्वार लेकिन प्यार कर" (चर्चा अंक-2147) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत ख़ूब। ख़ास के लिए आम की परवाह करता कौन है।

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  3. वाह बहुत ही बढि़या। सुंदर रचना।

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  4. ख़ास लोगों के कारण आम ज़िन्दगी यूँ ही तबाह होती है. बहुत अच्छी रचना.

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 07 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. बहुत सुंदर रचना। आम vs ख़ास

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